जाकिर नाइक का चौंकाने वाला बयान
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मशहूर इस्लामिक प्रचारक जाकिर नाइक के हालिया बयान ने पूरे देश में हलचल मचा दी है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि “13 साल की लड़की 100 साल के बुजुर्ग से निकाह कर सकती है, अगर वह प्यूबर्टी में आ चुकी है।” उन्होंने यह भी कहा कि अगर व्यक्ति धार्मिक है, तो वह अपनी बेटी की शादी ऐसे बुजुर्ग से करने के लिए तैयार हैं।
यह बयान न केवल विवादास्पद है, बल्कि इस्लाम के कुछ पारंपरिक पहलुओं को उजागर करता है, जो आज के आधुनिक समाज में सवाल खड़े करते हैं। क्या सच में यह इस्लाम की सच्चाई है? क्या हम 21वीं सदी में भी ऐसे नियमों को स्वीकार कर सकते हैं?
क्या यह इस्लाम का असली चेहरा है? समाज में उठे गंभीर सवाल
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जाकिर नाइक के बयान ने इस्लाम की उन परंपराओं को उजागर किया है, जो कई लोगों के लिए असहज और चिंताजनक हैं। क्या इस्लाम में वाकई ऐसी परंपराएं हैं जो बच्चों की मासूमियत को खतरे में डालती हैं? 13 साल की एक नाबालिग लड़की का 100 साल के बुजुर्ग के साथ निकाह करना क्या नैतिकता के खिलाफ नहीं है? समाज के कई तबकों में यह चर्चा है कि क्या यह धार्मिक कानून हैं या फिर उन परंपराओं का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है, जो सदियों पुरानी हैं।
यह सवाल न केवल मुस्लिम समाज के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। क्या किसी भी धर्म को इतना अधिकार है कि वह बच्चों की ज़िंदगी और उनके भविष्य से खिलवाड़ करे?
बच्चों के अधिकार
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आज के समय में जब हम बच्चों के अधिकारों और उनके भविष्य की सुरक्षा की बात करते हैं, ऐसे बयान हमारी सोच को झकझोर कर रख देते हैं। बच्चों की मासूमियत, उनका बचपन और उनका मानसिक विकास समाज की जिम्मेदारी है। जाकिर नाइक जैसे प्रभावशाली लोगों के बयान बच्चों को खतरे में डालने वाले प्रतीत होते हैं। क्या एक बच्ची के लिए यह सही होगा कि उसे किसी भी धार्मिक नियम के नाम पर एक बुजुर्ग से शादी करने के लिए मजबूर किया जाए? यह सोच कर ही दिल कांप उठता है।
इस्लाम की कुछ परंपराओं को लेकर समाज में उठने वाले इन सवालों का क्या जवाब है? क्या हमें धार्मिक कानूनों को उस रूप में मान लेना चाहिए जो मानवाधिकारों और बच्चों की सुरक्षा के खिलाफ हो?
क्या वाकई इस्लाम बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है?
इस्लाम पर लगातार ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि कुछ परंपराएं बच्चों के अधिकारों के साथ खिलवाड़ करती हैं। इस्लामिक प्रचारक जाकिर नाइक के बयान ने इन आशंकाओं को और भी बल दिया है। यह वक्त है कि हम इन मुद्दों पर गहराई से विचार करें। क्या इस्लाम में सुधार की जरूरत है? या फिर इन धार्मिक नियमों की गलत व्याख्या हो रही है?
ज़रूरी है कि हम बच्चों की सुरक्षा, उनके अधिकार और उनकी खुशहाली को धर्म से ऊपर रखें। कोई भी धर्म बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ की अनुमति नहीं दे सकता।
जय हिंद 🇮🇳
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