गोधरा की त्रासदी का सच और उसका मानवीय पक्ष
27 फरवरी 2002 का दिन गुजरात के गोधरा में हुई एक त्रासदी के नाम याद किया जाता है। साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगने से 59 निर्दोष लोगों की मौत हो गई, जिनमें से अधिकतर तीर्थयात्री थे। अयोध्या से लौट रहे इन लोगों की अचानक हुई इस दर्दनाक मौत ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया। घटना के बाद गुजरात में सांप्रदायिक तनाव ने विकराल रूप धारण कर लिया, जिससे समाज में दरारें गहरी होती गईं। आज, इतने साल बाद भी, इस घटना से जुड़े कई सवाल समाज के सामने खड़े हैं – क्या हम इन निर्दोष लोगों की याद को उतनी ही शिद्दत से संजो पाए हैं?
“द साबरमती रिपोर्ट”: इंसानियत की कहानी या विवाद का प्रतिबिंब?
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हाल ही में विक्रांत मैसी द्वारा अभिनीत फिल्म “द साबरमती रिपोर्ट” ने इस घटना पर एक नई रोशनी डाली है। इस फिल्म का उद्देश्य न केवल घटना के तथ्यों को उजागर करना है, बल्कि इसके माध्यम से समाज को एक मानवीय संदेश भी देना है। विक्रांत मैसी का कहना है कि यह फिल्म किसी समुदाय विशेष के पक्ष या विरोध में नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य इंसानियत का पक्ष लेना है। “द साबरमती रिपोर्ट” दर्शकों को उस दर्द को महसूस करने का आमंत्रण देती है, जो गोधरा कांड के पीड़ितों ने झेला।
गोधरा के 59 निर्दोष: क्यों हो गई उनकी चर्चा कम?
फिल्म में इस सवाल पर ध्यान दिया गया है कि क्यों गोधरा की घटना के पीड़ितों की स्मृतियां समय के साथ धुंधली पड़ती गईं। क्या यह इसलिए है कि उनकी पहचान किसी सांप्रदायिक नजरिये में फिट नहीं होती थी? या यह सवाल उठाना राजनीतिक रूप से अनुकूल नहीं था? विक्रांत मैसी के अनुसार, समाज को इस पर विचार करना चाहिए कि आखिर क्यों इन निर्दोषों की आवाज को धीरे-धीरे दबा दिया गया।
फिल्म का संदेश: सांप्रदायिकता से ऊपर उठकर इंसानियत को प्राथमिकता
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“द साबरमती रिपोर्ट” का संदेश है कि हमें घटनाओं को सांप्रदायिक दृष्टिकोण से नहीं बल्कि एक मानवतावादी नजरिये से देखना चाहिए। विक्रांत मैसी का कहना है कि हमें हर निर्दोष की जान को सम्मान देना चाहिए, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय से संबंधित हो। यह फिल्म उस दर्द की गूंज है, जिसे गोधरा की घटना के पीड़ितों ने सहा, और यह हमें याद दिलाती है कि हमें इंसानियत के सिद्धांतों का पालन करते हुए अपने समाज को बेहतर बनाना चाहिए।
गोधरा कांड से सीख: समाज में इंसानियत का स्थान
गोधरा की घटना एक ऐसा सबक है, जो हमें यह सिखाती है कि सांप्रदायिकता से ऊपर उठकर हमें इंसानियत को प्राथमिकता देनी चाहिए। किसी भी निर्दोष की जान की कीमत कम नहीं होती, और हमें इस घटना को केवल एक सांप्रदायिक रंग में नहीं देखना चाहिए। यह घटना हमें याद दिलाती है कि यदि हम अपनी धार्मिक, जातिगत और सामाजिक सीमाओं को छोड़कर एक-दूसरे के प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हैं, तो हम एक अधिक सौहार्दपूर्ण समाज की ओर बढ़ सकते हैं।
निष्कर्ष: एक मानवीय दृष्टिकोण की आवश्यकता
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“द साबरमती रिपोर्ट” केवल एक फिल्म नहीं है; यह एक मानवीय संदेश है, जो हमें याद दिलाता है कि हमारे समाज को सांप्रदायिकता से परे इंसानियत के सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए। विक्रांत मैसी का यह कहना कि फिल्म किसी धर्म का पक्ष नहीं लेती बल्कि इंसानियत का पक्ष लेती है, हमें अपने समाज को एक नई दृष्टि से देखने के लिए प्रेरित करता है।
यह फिल्म हमें याद दिलाती है कि इतिहास की घटनाओं से सीख लेकर हम एक शांतिपूर्ण भविष्य की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं। चाहे वह गोधरा के निर्दोष लोग हों या किसी भी सांप्रदायिक हिंसा के शिकार अन्य लोग, हमें उनकी याद को जीवित रखना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोका जा सके।
समाज को इस फिल्म से एक स्पष्ट संदेश मिलता है: इंसानियत ही हमें सांप्रदायिकता के अंधकार से बाहर निकाल सकती है।
जय हिंद 🇮🇳
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